Saturday, December 7, 2019

734.खुद सँहार करो

सँहार करो

अब तुम आर करो या पार करो,
सब दुष्टों का अब तो सँहार करो।

न्याय की उम्मीद भी छोड़ दिया,
फिर एक बेटी ने दम तोड़ दिया।
जाते-जाते कह गयी वो भाई को,
तुम छोड़ना नहीं मेरे कसाई को।
चाहे कुछ भी हो जाये भाई मेरे,
उन दुष्टों पर जानलेवा वार करो।

अरे ओ मूढ़ मानवाधिकार वालों
आज भी शर्म संज्ञान तुम डालो।
चुप रहते हो जब जलती है चिता,
तुझे तो सिर्फ दानवों की है चिंता।
मानो तुम्हारी बेटी या बहना थी,
यही सोच कर तुम प्रतिकार करो।

तुम्हीं बोलो क्या करेगा वो भाई,
क्यूँ न मारे उसे जो बना कसाई।
एनकाउंटर पर रोने वाले बोलो,
आज भी जरा तुम आँखें खोलो।
तुम्हारे घर में न हो जाए घटना
कुछ तो ऐसा ही व्यवहार करो।

एनकाउंटर पर तो संज्ञान लिया,
गलत जज ने उसको मान लिया।
जब मरती बेटी क्यूँ चुप हो जाते,
क्या शर्म हया सब कुछ खो जाते?
नहीं लुटे तेरी बेटी की भी अस्मत,
पेश नजीर कुछ इस प्रकार करो।

वर्षो तक तुम हो केस लटकाते,
निर्भया जैसे मुद्दे को भी भटकाते।
आज बेटियाँ क्यूँ पूछ रही सवाल?
खुद तुमने तो किया है यह हाल।
मिला पाओ अपनी बेटी से आँखे,
फ़ैसला कुछ ऐसे तुम दो-चार करो।

अगर वक्त पर जो मिलता इंसाफ़,
कर देती बेटियां तुमको भी माफ़।
बहुत हो चुका अब खेल दरिंदो का,
पर नोच लिया आज़ाद परिंदों का।
तेरे भी घर में घुस न जाये दानव,
हैवान दरिंदो में अब हाहाकार करो।

बचने न पाये यहाँ अब कोई दरिंदा,
जहाँ दिखे दुष्कर्मी जला दो जिंदा।
न तारीख़ जिरह न कोई मुक़दमा,
किसी बेटी को न अब पहुँचे सदमा।
बहुत देख लिया इंसाफ़ सभी का,
अब खुद की किस्मत सरकार करो।

बेटियाँ तुम खुद अब बनो हथियार
अपने हाथों को अब करो तलवार।
छोड़ो लिपिस्टिक काज़ल बिंदिया,
सोना है गर जब चैन की निंदिया।
बन दुर्गा, बन काली, बन चामुण्डा,
अब तुम खुद ही इनका सँहार करो।

©पंकज प्रियम
07 दिसम्बर 2019

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