जाड़े का मौसम कहता है..
जाड़े का मौसम कहता है
क्या कहता है? क्या कहता है?
सर्द हवाओं के संग-संग,
धूप गुलाबी से अंग-अंग
जब शोला गर्म दहकता है।
तब तनमन खूब बहकता है?
जाड़े का मौसम कहता है,
इसमें भी फूल महकता है।
कोहरा घना जब छाता है,
साफ़ नज़र नहीं आता है।
साँसों में शोला पिघलता है
साँसों से भांप निकलता है।
जाड़े का मौसम कहता है,
इसमें भी जीवन सजता है।
पछुआ कटारी चलती है,
बदन में आरी चलती है।
खुद ही खुद में सिमटता है,
मौसम भी पल में बदलता है।
जाड़े का मौसम कहता है,
इसमें भी जीवन पलता है।
सब सोये होते घर में जहाँ,
मुस्तैद कोई सरहद में वहाँ।
जब बर्फ में कोई जगता है,
तब चैन से हर कोई सोता है।
जाड़े के मौसम कहता है,
उनसे ही जीवन रहता है।
श्वानों को कम्बल मिलता है,
कोई नंगे बदन भी हिलता है।
चादर से मज़ार तो भरता है,
कोई ठंड से हार के मरता है।
जाड़े का मौसम कहता है,
इसमें भी जीवन पलता है।
कम्बल तो बंटता खूब यहाँ,
अफसर भी लूटता खूब यहाँ।
कम्बल की जरूरत सर्दी में
पर होता है टेण्डर गर्मी में।
ओढ़ के सबकोइ पीता है,
कम्बल में घी जो पिघलता है।
जाड़े का मौसम कहता है,
इसमें भी जीवन जलता है।
©पंकज प्रियम
©पंकज प्रियम
2 comments:
जी नमस्ते,
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार(२२-१२ -२०१९ ) को "मेहमान कुछ दिन का ये साल है"(चर्चा अंक-३५५७) पर भी होगी।
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
आप भी सादर आमंत्रित है
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अनीता सैनी
बहुत ही सुंदर सृजन ,सादर नमन पंकज जी
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