चमक-दमक
दोहे
चमक-दमक की चाँदनी, फिर अंधेरी रात।
तुम चमक में मत खोना, मानो मेरी बात।।
चमक-दमक में मत उलझ, यह तो माया जाल।
जीवन सादा है भला, बाकी सब जंजाल।।
चमक-दमक में जो फँसा, डूबा वह मझधार।
नाव भँवर में जब फँसी, क्या करता पतवार।।
चमक-दमक आवोहवा, शहर की मायाजाल।
खुद में ही उलझे यहाँ, फँसकर उसके जाल।।
चमक-दमक को छोड़ के, आ जाओ तुम गाँव।
निर्मल जल स्वच्छ हवा, शीतल शीतल छाँव।।
©पंकज प्रियम
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