Tuesday, December 31, 2019

769.गुजर जा ऐ साल तू

नई उम्मीदों का साल हो

ऐ साल,
तुम जा रहे हो न !
बेशक़ गुजर जाओ।
नहीं रोकना चाहता
नहीं टोकना चाहता।
जाना ही तो सत्य है जीवन का।
इसी सत्य का तूने परिचय दिया
प्रारब्ध जितना सुंदर था
अंत उतना ही दुःखद रहा।
ढेरों मान-सम्मान और ज्ञान दिया।
अपने-पराये का भी तूने भान दिया।
कितनी खुशी थी ज़िन्दगी में
कितना खुशहाल था जीवन।
वो मनहूस नवम्बर का महीना,
क्यूँ न कहूँ उसको मैं कमीना।
18 नवम्बर की वो सर्द रात,
दिया जिसने मुझे दर्द घात।
जाते-जाते घर की खुशियां तू ले गया
अभी तो उमर ही क्या थी
जो मेरे भैया संग अपने ले गया।
सोच,
कितनी तकलीफ़ हुई होगी?
कितनी पीड़ा सही होगी?
एक माँ की गोद में उसके
बेटे को चिरनिद्रा में सुला दिया।
एक पिता के हृदय में असह्य वेदना
एक भाई, एक बहन और मासूम से
छोटे-छोटे अबोध बच्चों के सर से
तूने प्यार का साया हटा दिया।
बयाँ नहीं कर सकता उस दर्द का
जो जख़्म तूने हम सबको है दिया।
जानता हूँ और मानता हूँ
यही सत्य है जीवन का,
जो आया है वो जाएगा
कौन यहाँ रह पाएगा?
तू भी तो गुजर गया
पर तेरा अंत निश्चित था,
नई उम्मीदों का साल भी निश्चित था
पर ऐसे बीच सफ़र में
असमय अकल्पित किसी का चले जाना!
बहुत ही दुःखद होता है।
जिन्हें याद कर दिल ये रोता है
नहीं याद करना चाहता तुझे उन्नीस! (2019)
ऐसा दर्द तू कभी न देना मुझे बीस। (2020)
नई उम्मीदों का यह साल हो।
हर दिन जीवन खुशहाल हो।
न द्वेष किसी से न किसी से रार हो
हर किसी को ख़ुशी और सबको सबसे प्यार हो।
©पंकज प्रियम
31.12।2019

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