अगर गुस्सा तुम्हें आता, कभी क्या घर जलाते हो?
अगर मतभेद हो घर में, कभी क्या सर लड़ाते हो?
नहीं नुकसान कुछ करते, समझते घर हो अपना-
तो क्या ये घर नहीं तेरा? जो तुम पत्थर चलाते है।।
समझते जो अगर घर तो, कभी ये काम न करते,
अगर होती मुहब्बत तो, कभी बदनाम न करते।
जलाता देश को जो है, नहीं वह देश का होता-
अगर तुम नागरिक होते, यूँ कत्लेआम न करते।
©पंकज प्रियम
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