Tuesday, December 17, 2019

758. पहचानो तुम

पहचानो तुम
नफऱत की जो आग लगाये, उसको भी पहचानो तुम।
मानवता के दुश्मन हैं जो, हकीकत उसकी जानो तुम।।

जाति धरम और मज़हब का हर चेहरा गंदा लगता है,
इंसानों के वेश में छूपकर हर मोहरा दरिंदा लगता है।।

नफ़रत की जो बात करे, कभी न उसकी मानो तुम।
देश का दुश्मन जो भी बैठा, उसको भी पहचानो तुम।

आस्तीनों में छूपकर बैठे,  काले विषधर नाग यहाँ,
ज़हर उलगते रहते हरदम, फूँकते घरघर आग यहाँ।

फन कुचलो उन सर्पों का, जो भीतर बैठे घात करे।
सर कुचलो उन गद्दारों का छूपकर जो आघात करे।

समर शेष नहीं अब कुछ भी समय चक्र पहचानो तुम।
अमन-चैन के दुश्मन हैं जो, हकीकत उनकी जानो तुम।

©पंकज प्रियम

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