काट देना उसके हाथ
किंचित भय तू करना नहीं,
कभी दुष्टों से तू डरना नहीं।
अस्मत पे कोई डाले हाथ,
काट देना तुम उसके हाथ।।
छोड़ो लज्जा उठा लो शस्त्र,
हाथों को ही बना लो अस्त्र।
गलत करे जो तेरे साथ,
काट देना तुम उसके हाथ।।
नहीं कृष्ण यहाँ अब आएंगे,
न अर्जुन-भीम तुझे बचाएंगे।
उठा गाण्डीव बन जाना पार्थ,
काट देना तुम उसके हाथ।।
तुम्हीं हो दुर्गा तुम्हीं हो काली,
गदा खड्ग और खप्परवाली।
उठा त्रिशूल बन के भोलेनाथ,
काट देना तुम उसके हाथ।।
नहीं कोर्ट न मानव अधिकार,
वोट बैंक में सब गये हैं हार।
समझ न खुद कभी अनाथ,
काट देना तुम उसके हाथ।।
कबतक यूँ ही मरती रहोगी?
खूनी पंजो से डरती रहोगी?
नहीं मिलेगा जब कोई साथ,
काट देना तुम उसके हाथ।।
उपदेश गीता का रखना याद,
दानवों का वध नहीं अपराध।
हथियार उठाके आत्मरक्षार्थ,
काट देना तुम उसके हाथ।।
©पंकज प्रियम
8.12.2019
3 comments:
नहीं कृष्ण यहाँ अब आएंगे,
न अर्जुन-भीम तुझे बचाएंगे
उठा गाण्डीव बन जा पार्थ,
काट देना तुम उसके हाथ
बहुत जरुरी हो गया हैं इस तथ्य को समझना ,बहुत ही सुंदर और प्रेरणादायक रचना ,सादर नमन
धन्यवाद
यह कविता तो मानो सीधी चुनौती देती है कि अब और चुप रहने का समय नहीं है। हर पंक्ति में जो जोश और ललकार है, वो दिल को छू लेता है। मुझे अच्छा लगा कि इसमें औरों पर निर्भर होने की बजाय खुद खड़े होने की बात कही गई है। कृष्ण, भीम या किसी और नायक का इंतजार छोड़कर खुद को दुर्गा और काली मानने का संदेश बेहद ताकतवर है।
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