समंदर हूँ मैं लफ़्ज़ों का, मुझे खामोश रहने दो, छुपा है इश्क़ का दरिया, उसे खामोश बहने दो। नहीं मशहूर की चाहत, नहीं चाहूँ धनो दौलत- मुसाफ़िर अल्फ़ाज़ों का, मुझे खामोश चलने दो। ©पंकज प्रियम
दिल vs दिमाग मुल्क हो या महबूब, मुहब्बत वही कर पाता है, छोड़कर जो ज्ञान गंगा दिल में उतर जाता है। ये दिमाग तो हरवक्त साज़िशों में फँसा रहता, मगर दिल को तो केवल प्यार नज़र आता है।। ©पंकज प्रियम
वह क्या ग़ज़ब लिखा है! इतनी छोटी सी कविता में दिल और दिमाग़ की जंग को इतनी खूबसूरती से दिखाना आसान नहीं होता। मुझे पसंद आया कि तुमने दिमाग़ को चालाक और दिल को मासूम दिखाया, फिर भी दोनों ज़रूरी लगते हैं।
Post a Comment
1 comment:
वह क्या ग़ज़ब लिखा है! इतनी छोटी सी कविता में दिल और दिमाग़ की जंग को इतनी खूबसूरती से दिखाना आसान नहीं होता। मुझे पसंद आया कि तुमने दिमाग़ को चालाक और दिल को मासूम दिखाया, फिर भी दोनों ज़रूरी लगते हैं।
Post a Comment