एक खत!जिसे कभी लिखा नही उसने
रोज बैठकर उसका जवाब लिखा मैंने।
एक खत! जिसे कभी खोला नही उसने
रोज उसके दरवाजे पर छोड़ रखा मैंने।
एक खत! जिसे कभी पढ़ा नही उसने
उसी में इश्क़ का इज़हार कर दिया मैंने।
एक खत!जिसे कभी लिखा नही मैंने।
उसका ही जवाब भेज दिया है उसने।
एक खत!जिसे कभी लौटा दिया उसने
उसके ही दर टुकड़ो में फाड़ दिया मैंने।
एक खत! जिसे पूरी जिंदगी लिखा मैंने
उसको जलाकर मौत लिख दिया उसने
एक खत! जिसे कभी समझा नही उसने
एक खत!जिसे कभी समझाया नही मैंने।
©पंकज प्रियम
6.3.2018
रोज बैठकर उसका जवाब लिखा मैंने।
एक खत! जिसे कभी खोला नही उसने
रोज उसके दरवाजे पर छोड़ रखा मैंने।
एक खत! जिसे कभी पढ़ा नही उसने
उसी में इश्क़ का इज़हार कर दिया मैंने।
एक खत!जिसे कभी लिखा नही मैंने।
उसका ही जवाब भेज दिया है उसने।
एक खत!जिसे कभी लौटा दिया उसने
उसके ही दर टुकड़ो में फाड़ दिया मैंने।
एक खत! जिसे पूरी जिंदगी लिखा मैंने
उसको जलाकर मौत लिख दिया उसने
एक खत! जिसे कभी समझा नही उसने
एक खत!जिसे कभी समझाया नही मैंने।
©पंकज प्रियम
6.3.2018
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