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उड़े होली के रंग बहुत
तुम मेरा रंग लगाओ न।
चढ़े होली के भंग बहुत
होठो से भंग पिलाओ न।
होंगे सुंदर गाल बहुत
गुलाल मेरा मलवाओ न
महक उठेगा बदन बहुत
सुंगध मेरी लगाओ न।
चहक उठेगा तन बहुत
अंग से अंग लगाओ न।
बहक उठेगा उमंग बहुत
मन से तरंग उठाओ न।
भींग जाएगी चुनरी चोली
तुम मेरे संग नहाओ न।
फिर आएगी कैसी होली
तुम मेरा रंग लगाओ न।
होली रंगों का खेला है
मन उमंगों का मेला है
याद आएंगे फिर बहुत
तुम मेरे रंग, रंग जाओ न।
मिल जाएंगे मीत बहुत
तुम मुझसे प्रीत लगाओ न।
बन जाएंगे रीत बहुत
तुम मेरा गीत सुनाओ न।
घुल जाएंगे रंग बहुत
तुम मेरा रंग मिलाओ न।
चढ़े होली के भंग बहुत
होठों से भंग पिलाओ न।
©पंकज प्रियम
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