वंश बेल
सुनीता का मन आज दहाड़ मार कर रोने को कर रहा था लेकिन किसके कांधे पर सर रखकर रोती?
उसके आंसू आज कौन पोंछता ? सुनीता ने खुद ही तो आज सबकुछ गवां दिया था। आखिर करती भी क्या?
किस्मत ने इतना बड़ा खेल जो रचा उसके साथ।
बड़े अरमानों के साथ बहु बनकर आयी थी इस घर मे।
घर के इकलौते बेटे की पत्नी बन कर आई थी तो पूरे परिवार की दुलारी थी। साल दो साल कब गुजर गए पता ही नही चला लेकिन तीसरे साल से सवालों के घेरे में आ गयी।
सबसे पहला सवाल तो मां जैसी सास ने ही किया-
'बहु !अब तो खेलने के लिए पोता दो,वर्षो बीत गए इस घर मे बच्चों की किलकारी गूँजें।'
मां!आप भी न ,इतनी भी क्या जल्दी है?
अरे!मर मुर गयी तो फिर पोते का अरमान दिल मे ही रह जायेगा।'
मरे आपके दुश्मन माजी! आपको अभी बहुत जीना है।
सुनीता ने मां को तो समझा दिया लेकिन वो खुद से उलझ पड़ी। बच्चा तो उसे भी चाहिए लेकिन क्या करे?
अगले ही रोज वो पति के साथ डॉक्टर के पास गई ।पूरी चेकअप के बाद डॉक्टर ने जो कहा सहसा विश्वास नही हुआ।
"आप की बच्चेदानी में प्रॉब्लम है गर्भधारण की उम्मीद न के बराबर है। "डॉक्टर ने मानो गर्म पिघलता कांच डाल दिया कानों में।
सुनीता को तो काठ मार गया और पति प्रकाश की भी आँखों मे आंसू भर गए। फिर भी उसने खुद को संभाला
"अरे!छोड़ो न चिंता मत करो,लाखों अनाथ बच्चे हैं उन्हें गोद ले लेंगे।
सुनीता खामोश बूत सी बनी खड़ी रही। प्रकाश कब उसे लेकर घर आया उसे कुछ होश नही।
प्रकाश ने घरवालों को सबकुछ साफ साफ बता दिया और बच्चा गोद लेने की इच्छा भी जता दी।
हालांकि सास ससुर को ये बात नही जँची ।आखिर वंश वृद्धि का सवाल था।लोग क्या कहेंगे,समाज में क्या रुतबा रह जायेगा,आदि आदि। फिर भी उन्होंने चुप्पी साध ली।
अब तो आस पड़ोस और पूरे गांव के लोगों ने सवाल करना शुरू कर दिया।जो भी घर आता एक ही सवाल
बहु कबतक बच्चा दोगी गोद मे खेलने को।
सुनीता बाहर तो मुस्कुरा देती लेकिन ये सवाल अंदर तक साल जाती। उसे पति का भी दर्द नही सहा जा रहा था। जो पूरे गांव के बच्चों का प्रिय चाचा था उसका ही आंगन सूना सूना सा था।
सुनीता ने उसरोज दिल पर पत्थर रख कर एक प्रस्ताव रखा-सुनिए जी!मुझे भी इस घर मे बच्चा चाहिए
"ठीक है आज ही आश्रम जाकर गोद लेने की प्रक्रिया शुरू करते हैं"-प्रकाश ने बड़े ही शांत स्वर में जवाब दिया।
"नही इस घर मे आपके ही अंश का वंश हो-सुनीता ने बड़े भारी आवाज में कहा।
लेकिन तुम! कैसे?
आप दूसरी शादी कर लीजिए-पूरी दृढ़ता से सुनीता ने कहा
नही ये में नही कर सकता और तुम फिर ऐसी बात मत करना-प्रकाश ने नकारते हुए कहा।
प्लीज !!आपको मेरी कसम! एक उपाय है.
क्या?
आप मेरी छोटी बहन अनिता से शादी कर लीजिए। हम बहनें खुशी खुशी रह लेंगे।
नही नही ये ठीक नही।प्रकाश ने मना कर दिया तब सुनीता ने यही प्रस्ताव घरवालों के समक्ष रखी। मायके में भी उसने सबको मनाया। काफी जिरह बहस के बाद शादी करने को प्रकाश राजी हुआ।
बड़ी सादगी में प्रकाश की दूसरी शादी हो ।पूरी रस्म सुनीता ने निभाई और उस रात अपने पति को अनिता के कमरे में छोड़कर लौटी तो कदम थम से गए।
सुनीता अपने कमरे में जाकर सभी लाइट बुझाकर कोने में चुपचाप बैठ गयी। उसने पति की दूसरी शादी का फैसला तो बड़े आराम से कर लिया था लेकिन आज की रात काटने को दौड़ रही थी। अंधेरो से लिपट खूब रोना चाह रही थी। दहाड़ मार कर रो लेना चाहती थी। लेकिन इसबात पर चुप थी कि उसके घर का वंशबेल नही मुरझाएगा।
पंकज प्रियम
6.3.18
सुनीता का मन आज दहाड़ मार कर रोने को कर रहा था लेकिन किसके कांधे पर सर रखकर रोती?
उसके आंसू आज कौन पोंछता ? सुनीता ने खुद ही तो आज सबकुछ गवां दिया था। आखिर करती भी क्या?
किस्मत ने इतना बड़ा खेल जो रचा उसके साथ।
बड़े अरमानों के साथ बहु बनकर आयी थी इस घर मे।
घर के इकलौते बेटे की पत्नी बन कर आई थी तो पूरे परिवार की दुलारी थी। साल दो साल कब गुजर गए पता ही नही चला लेकिन तीसरे साल से सवालों के घेरे में आ गयी।
सबसे पहला सवाल तो मां जैसी सास ने ही किया-
'बहु !अब तो खेलने के लिए पोता दो,वर्षो बीत गए इस घर मे बच्चों की किलकारी गूँजें।'
मां!आप भी न ,इतनी भी क्या जल्दी है?
अरे!मर मुर गयी तो फिर पोते का अरमान दिल मे ही रह जायेगा।'
मरे आपके दुश्मन माजी! आपको अभी बहुत जीना है।
सुनीता ने मां को तो समझा दिया लेकिन वो खुद से उलझ पड़ी। बच्चा तो उसे भी चाहिए लेकिन क्या करे?
अगले ही रोज वो पति के साथ डॉक्टर के पास गई ।पूरी चेकअप के बाद डॉक्टर ने जो कहा सहसा विश्वास नही हुआ।
"आप की बच्चेदानी में प्रॉब्लम है गर्भधारण की उम्मीद न के बराबर है। "डॉक्टर ने मानो गर्म पिघलता कांच डाल दिया कानों में।
सुनीता को तो काठ मार गया और पति प्रकाश की भी आँखों मे आंसू भर गए। फिर भी उसने खुद को संभाला
"अरे!छोड़ो न चिंता मत करो,लाखों अनाथ बच्चे हैं उन्हें गोद ले लेंगे।
सुनीता खामोश बूत सी बनी खड़ी रही। प्रकाश कब उसे लेकर घर आया उसे कुछ होश नही।
प्रकाश ने घरवालों को सबकुछ साफ साफ बता दिया और बच्चा गोद लेने की इच्छा भी जता दी।
हालांकि सास ससुर को ये बात नही जँची ।आखिर वंश वृद्धि का सवाल था।लोग क्या कहेंगे,समाज में क्या रुतबा रह जायेगा,आदि आदि। फिर भी उन्होंने चुप्पी साध ली।
अब तो आस पड़ोस और पूरे गांव के लोगों ने सवाल करना शुरू कर दिया।जो भी घर आता एक ही सवाल
बहु कबतक बच्चा दोगी गोद मे खेलने को।
सुनीता बाहर तो मुस्कुरा देती लेकिन ये सवाल अंदर तक साल जाती। उसे पति का भी दर्द नही सहा जा रहा था। जो पूरे गांव के बच्चों का प्रिय चाचा था उसका ही आंगन सूना सूना सा था।
सुनीता ने उसरोज दिल पर पत्थर रख कर एक प्रस्ताव रखा-सुनिए जी!मुझे भी इस घर मे बच्चा चाहिए
"ठीक है आज ही आश्रम जाकर गोद लेने की प्रक्रिया शुरू करते हैं"-प्रकाश ने बड़े ही शांत स्वर में जवाब दिया।
"नही इस घर मे आपके ही अंश का वंश हो-सुनीता ने बड़े भारी आवाज में कहा।
लेकिन तुम! कैसे?
आप दूसरी शादी कर लीजिए-पूरी दृढ़ता से सुनीता ने कहा
नही ये में नही कर सकता और तुम फिर ऐसी बात मत करना-प्रकाश ने नकारते हुए कहा।
प्लीज !!आपको मेरी कसम! एक उपाय है.
क्या?
आप मेरी छोटी बहन अनिता से शादी कर लीजिए। हम बहनें खुशी खुशी रह लेंगे।
नही नही ये ठीक नही।प्रकाश ने मना कर दिया तब सुनीता ने यही प्रस्ताव घरवालों के समक्ष रखी। मायके में भी उसने सबको मनाया। काफी जिरह बहस के बाद शादी करने को प्रकाश राजी हुआ।
बड़ी सादगी में प्रकाश की दूसरी शादी हो ।पूरी रस्म सुनीता ने निभाई और उस रात अपने पति को अनिता के कमरे में छोड़कर लौटी तो कदम थम से गए।
सुनीता अपने कमरे में जाकर सभी लाइट बुझाकर कोने में चुपचाप बैठ गयी। उसने पति की दूसरी शादी का फैसला तो बड़े आराम से कर लिया था लेकिन आज की रात काटने को दौड़ रही थी। अंधेरो से लिपट खूब रोना चाह रही थी। दहाड़ मार कर रो लेना चाहती थी। लेकिन इसबात पर चुप थी कि उसके घर का वंशबेल नही मुरझाएगा।
पंकज प्रियम
6.3.18
No comments:
Post a Comment