ग़ज़ल: रूह तक
तुझे पाना,नही हसरत मेरी
मुझे बस तुझमे, खो जाना है।
तेरा जिस्म,नही चाहत मेरी
मुझे तो तेरे, रूहतक जाना है।
तुझे छूना, नही फितरत मेरी
मुझे तेरे सांसों में, बस जाना है।
तुझे सोना ,नही ये नियत मेरी
मुझे तेरे ख्वाबों में, खो जाना है।
मेरी चाहत,ख़्वाब, मेरी हसरत
सब कुछ तुझसे ही, तो जाना है।
तेरी मुहब्बत,नही क़िस्मत मेरी
मुझे तेरे इश्क़ में,यूँ गुजर जाना है।
पंकज प्रियम
14.3.2018
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