Friday, March 30, 2018

कणकण में प्रीत है



कणकण में प्रीत है
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हर कदम पे ,जहां नृत्य है
हर शब्द में,जहाँ पे गीत है
हवाओं में बहता जहाँ प्रीत है।
प्राकृतिक छटा से भरपूर
खनिज व संपदा से प्रचुर
फिजाओं में बजता संगीत है।
जंगल-पहाड़, नदी- नाला
यहां का कणकण निराला
औरों की खुशी में, यहां जीत है।
धरती आबा बिरसा भूमि
सिद्धो-कान्हो जन्म भूमि
जान से बड़,जंगल जमीन रीत है।
चहुँ ओर हरियाली चादर
माटी-मटकी सोना गागर।
बुतरू लटकाए,औरत की पीठ है।
कदम कदम,मीठी बोली
आदिवासी ,जनमन भोली
कभी सरस् सरल, कभी ढीठ है।
पार्श्वनाथ गगन चुम्बी
देवलोक देवघर भूमि
प्रकृति देव् समर्पण यहां नीत है
झारखंड के कणकण में प्रीत है।
©✍पंकज प्रियम
30.3.2018

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