हो ली होली
********
होली तो बस अब हो ली
ले चल अब अपनी डोली।
बहुत हो गयी हँसी-ठिठोली
फिर उठा लो अपनी झोली।
अगले बरस फिर आना है,
होली तो बस इक बहाना है।
होली तो बस इक बहाना है,
बिखरे जनों को जुटाना है।
बच्चों के दरस को तरसती
माँ-बाप की बूढ़ी आंखों में,
फिर वही जुगनू जलाना है।
होली तो बस इक बहाना है।
विदेशों में जा बसे है बच्चे,
नहीं है खबर कैसे हैं बच्चे?
राहों अपलक बूढ़ी आंखों,
रोज ही बरसते मोती कच्चे।
माँ के काँपते हाथों पकते,
पकवानों की खुशबू जाना है।
गाँव की गलियाँ फिर
कल हो जाएंगी सूनी
कुछ कहेंगे लोग अपने
कुछ रह जाएगी अनसुनी।
गलियों को फिर सजाना है
होली तो बस इक बहाना है।
फिर वही ऑफिस का टेंशन
वही घर का फिर वो अटेंशन
ऊँचे ख्वाबो को जो जगाना है,
जीवन को हर रोज बिताना है,
अगले बरस फिर गाँव आना है
होली तो बस एक बहाना है।
©पंकज प्रियम
2.3.2018
No comments:
Post a Comment