Friday, March 9, 2018

गज़ल.. गुनाह कर लेने दो

थक गया हूँ तेरे इन्तजार में बहुत
गेसुओं की छाँव पनाह कर लेने दो।

छुप गए हो इन गेसुओं में बहुत
चाँद का अब तो दीदार कर लेने दो।

कर देना सजा मुक़र्रर मेरी बहुत
जरा पहले कुछ गुनाह तो कर लेने दो।

वो खड़े है इश्क़ राह मुसाफ़िर बहुत
जरा हुश्न के दीदार में आह भर लेने दो।

लगा देना फिर इश्क़ में आग बहुत
डूब दरिया मुहब्बत बेपनाह कर लेने दो

याद रखना याद आएंगे हम बहुत
आहिस्ता गुज़र इश्क़ की राह कर लेने दो।

दे देना चाहे फिर तुम दर्द बहुत
दिल को मुहब्बत बेपनाह कर लेने दो।




©पंकज प्रियम
9.3.2018

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