पहचान
लफ्ज़ मेरी पहचान बने तो ही बेहतर
चेहरे का क्या है?
वो तो मेरे साथ ही गुजर जाएगा।
शब्द मेरा सम्मान बने तो ही बेहतर
बोल का क्या है?
वो तो मेरे साथ ही चुप हो जाएगा।
अक्स मेरी निशान बने तो ही बेहतर
शरीर का क्या है?
वो तो मेरे साथ ही नश्वर हो जाएगा।
नाम मेरा इतिहास बने तो ही बेहतर
काम का क्या है?
वो तो मेरे साथ ही शिथिल हो जाएगा।
मेरा आँखे रौशनी बने तो ही बेहतर
ख्वाबों का क्या है?
वो तो मेरे साथ ही यूँ बिखर जाएगा।
-पंकज प्रियम
29.3.2018
लफ्ज़ मेरी पहचान बने तो ही बेहतर
चेहरे का क्या है?
वो तो मेरे साथ ही गुजर जाएगा।
शब्द मेरा सम्मान बने तो ही बेहतर
बोल का क्या है?
वो तो मेरे साथ ही चुप हो जाएगा।
अक्स मेरी निशान बने तो ही बेहतर
शरीर का क्या है?
वो तो मेरे साथ ही नश्वर हो जाएगा।
नाम मेरा इतिहास बने तो ही बेहतर
काम का क्या है?
वो तो मेरे साथ ही शिथिल हो जाएगा।
मेरा आँखे रौशनी बने तो ही बेहतर
ख्वाबों का क्या है?
वो तो मेरे साथ ही यूँ बिखर जाएगा।
-पंकज प्रियम
29.3.2018
No comments:
Post a Comment