Wednesday, March 14, 2018

उम्मीद

उम्मीद
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बड़ी उम्मीद से लहरा के साहिल पे आते हैं
बेजान पत्थरों से टकरा के फिर लौट जाते हैं।

खो गयी थी, जो उम्मीदें कहीं
फिर उन्ही उम्मीदों ने अपना
आँचल एकबार लहराया है।

सांसों में जी रही थी जिंदगी
फिर उन्ही उम्मीदों ने, सपना
दिखाकर, दिल धड़काया है।

छोड़ दिया था, तेरे साथ ही
तुझे पाने की सारी उम्मीद,
फिर से वो उम्मीद जगाया है।

लगा रखा है फिर से उम्मीद
चाहत तेरे रूह तलक जाना
मन में ये उम्मीद जगाया है।

तू छोड़!नही छोड़ेंगे उम्मीद
मुहब्बत की हद गुजर जाना
वर्षो बहुत इंतजार कराया है।

उम्मीदों ने आँचल लहराया है।

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