Monday, March 19, 2018

ग़ज़ल-नमक का शहर


ज़ख्म कहाँ तू खोल बैठा
ये तो नमक का शहर है।
दिल परिंदा कहाँ तू बैठा
सूखे दरख्तों का शहर है।
बन जाएंगे ज़ख्म नासूर
ये तो धीमा सा जहर है।
तुम्हारे दर्द पे, वो हंसता
कैसे लोगों का शहर है।
इंतजार-ए- इश्क़,गुजरा
नहीं उनपे,कुछ असर है।
दिल कहाँ, तू खो बैठा
नहीं कोई ,यहाँ बसर है।
©पंकज प्रियम
20.3.2018

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