चाँद तो सोया है,रात की गहराई में
कैसे तुम सोओगे,रात की तन्हाई में।
दिन तो गुजार ली है,भीड़ में तुमने
कैसे तुम गुजारोगे,रात यूँ तन्हाई में।
जो लम्हे गुजारे, एक साथ हमने
कैसे भुलाओगे ,रात की तन्हाई में।
जो लिख दिया है,दिल में नाम हमने
कैसे मिटा पाओगे,दिल की गहराई में
कैसे कह दूं? किस कदर सहा हमने
कैसे गुजारी रात तब तेरी शहनाई में।
लगायी है मेंहदी,किसी और कि तुमने
कैसे मिटाओगे मेरा वो रंग, बेवफाई में।
फेंक दी है भले मेरी तस्वीर को तुमने
मेरा ही अक्स दिखेगा,रात रौशनाई में
मेरे ही नाम दिखेंगे,इतिहास के पन्ने
जब भी पढोगे,तुम रात की तन्हाई में।
गहरी चोट खाई है, मुहब्बत में हमने
कैसे सहोगे मेरा दर्द,रात की तन्हाई में
इश्क़ की दास्ताँ,यूँ लिखी "प्रियम"तुमने
वो रो पड़े खुद पढ़ के,रात की तन्हाई में।
---पंकज प्रियम
27.3.2018
No comments:
Post a Comment