गौरैया!
कितनी प्यारी
बड़ी है न्यारी
सबकी दुलारी
छोटी चिरैया।
चुन चुन कर
खाती दाना।
फुर्र!हो जाएगी
पास, न जाना।
कहाँ? गुमसुम
खो गयी तुम!
मेरे आँगन की
वो छोटी गोरैया।
क्या करूँ मैं?
आके,तेरे आँगन
लगता नही, मन
नहीं रहा, उपवन।
भात से क्या?
नही भरता, तन
मानव खाता
ये छोटा सा तन।
कहाँ लगाऊं
मैं अब घोसला
कंक्रीट भरा
मानव घोसला।
अब भी आऊं
मैं तेरे आँगन
एक पेड़ लगा
बना घर उपवन।
#गौरैया दिवस
✒पंकज प्रियम
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