Wednesday, March 21, 2018

कविता

कविता

चंद छन्दों की तुकबन्दी! नहीं है कविता।
चंद लफ्जों की युगलबंदी!नही है कविता।
भाव भंगिमा की घेराबंदी! नहीं है कविता।

साहित्यिक शब्दों का खेल! नहीं है कविता।
सिर्फ सुर व ताल का मेल! नहीं है कविता।
दुरूह शब्दों का घालमेल!नहीं  है कविता।

दिल दिमाग,समझ न पाए! नही है कविता।
जो सीधे दिल में उतर जाए, वही है कविता।
भावना की राह, गुजर जाए,वही है कविता।

दिल के रस्ते ,रूह तक जाए,वही है कविता।
किसी दर्द के तह तक जाए, वही है कविता।
भूख की तड़प जो समझाए,वही है कविता।

बच्चे की पीड़ा जो दिखलाए,वही है कविता।
जमाने का जो दर्द बतलाए, वही है कविता।
आसान शब्दों सब कह जाए,वही है कविता।

औरों के गम आँसू बन आए, वही है कविता।
नया सन्देश कुछ देकर जाए, वही है कविता।
बदलाव देश-परिवेश कर जाए,वही है कविता।

©पंकज प्रियम

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