Tuesday, March 27, 2018

तन्हाई

संग धारा बहने से मंजिल नहीं मिलती
तन्हाई में कभी महफ़िल नहीं मिलती।
पाना हो गर मंजिल तो विपरीत चलो
तन्हाइयों से निकल करता प्रीत चलो।
धारा तो अपने संग बहा ले जाती है
खुद की भी अस्मत लूटा ले जाती है।
औरों की खातिर तुम सूरज सा जलो
तन्हाई में भी कभी न तन्हा तुम चलो।
मुफलिसी में भी तुम मुस्कुराते चलो
भीड़ में भी गुमनाम,पहचान न भूलो।
फूल ही नहीं कांटो में भी चल पाता है
दर्द आँसू पीकर भी जो मुस्कुराता है।
भीड़ में भी अलग पहचान रखता है
दुनिया उसका ही तो सम्मान करता है।
        -पंकज प्रियम

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