Thursday, May 10, 2018

323.आया हूँ

आया हूँ
दिल को दिल से यूँ मिलाने आया हूँ
तेरे रूह में इश्क़ को जगाने आया हूँ।
मुहब्बत की राह है सबको ले चलना
चाहतों की बस्तियां बसाने आया हूँ।
तू भी तो जरा हाथ बढ़ा दे अपना
हाथ बढ़ाकर साथ निभाने आया हूँ।
जिस्म नहीं तेरी रूह तक है जाना
इश्क़ का फ़लसफ़ा पढ़ाने आया हूँ।
टूटे रिश्तों को फिर से मुझे है जोड़ना
फिर उन्हीं रिश्तों को बनाने आया हूँ।
कुछ तुम्हें और बहुत मुझे है कहना
कुछ सुनने और कुछ सुनाने आया हूँ।
रह गयी थी कभी जो बात तब अधूरी
उन सारे जज्बातों को बताने आया हूँ।
बुझ गए थे जो कभी मुहब्बत के दीये
एकबार फिर उन्हें ही जलाने आया हूँ।
लफ़्ज़ों का समंदर लहराया जो प्रियम
उन लहरों में खुद को समाने आया हूँ।
©पंकज प्रियम
10.5.2018

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