Friday, May 4, 2018

314.नज़र आता है

नज़र आता है
हर अक्स यहाँ बेज़ार नज़र आता है
हर शख्स यहां लाचार नज़र आता है।
जीने की आस लिए यहां हर आदमी
मौत का करता इंतजार नज़र आता है।
काम की तलाश यहाँ रोज भटकता
हर युवा अब बेरोजगार नज़र आता है।।
भूखे सोता गरीब,कर्ज़ में डूबा कृषक
हर बड़ा आदमी सरकार नज़र आता है।
गाँव शहर की हर गलिओं में मासूमों से
यहाँ रोज होता बलात्कर नज़र आता है।
और क्या लिखोगे अब दास्ताँ 'प्रियम'
सबकुछ बिकता बाज़ार नज़र आता है।
©पंकज प्रियम
4.5.2018

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