आतंकी का धर्म
आतंकी का कोई धर्म नहीं
फिर क्यूँ मोहलत पाया है।
माह रमजान में भी देखो
कैसे उसने खून बहाया है।
वो अपना त्यौहार मनाएंगे
हम बैठकर आँसू बहाएंगे
जवानों की देंगे कुर्बानी
क्या यही नीति अपनाएंगे।
फिर कैसा युद्ध विराम है
कर दिया जीना हराम है
धोखा उसकी फितरत है
कहाँ माना कि विश्राम है।
क्या सस्ती इतनी जान है
सरहद पे मरता जवान है
खत्म कर दो सारे आतंकी
क्या होली, क्या रमजान है!
©पंकज प्रियम
20.5.2018
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