340.शब्दों का कारोबार
शब्दों का मेरा कारोबार है जी!
अपना तो यही व्यापार है जी!
इससे कोई रूठे तो क्या करूँ?
शब्द ही तो मेरा रोजगार है जी।
शब्दों में ही मेरा संसार है जी
इसमें अपना अधिकार है जी
अपने ही लुटे तो मैं क्या करूँ
शब्दों में ही मेरा घरबार है जी।
शब्दों ने किया इंतजार है जी।
इसी ने तो किया एतबार है जी
सांसे ही छूटे तो मैं क्या करूँ?
शब्दों से हुआ मुझे प्यार है जी!
शब्दों से ही पाया संस्कार है जी
सिखाया इसी ने व्यवहार है जी
नफा में हो घाटे,तो क्या करूँ
किया यही तो करोबार है जी!
©पंकज प्रियम
20.5.2018
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