Wednesday, May 16, 2018

333.क्या हो गया?

333.क्या हो गया
देखते देखते क्या से क्या हो गया
दोस्त कैसे मेरा वो बेवफ़ा हो गया।
मेरी खुशी के जो कभी तलबगार थे
दरमियाँ हमारे कैसे फासला हो गया।
सजा कैसे मुक़र्रर कर दिया है तुमने
अदालत के बिना ही फैसला हो गया।
तेरे शहर में तो अब दिल लगता नहीं
जबसे बेवफ़ाई का हादसा हो गया।
चाह कर भी तो तुम्हें भूल पाता नहीं
इश्क़ में कैसा ये तेरा नशा हो गया।
कोर्ट भी तुम्हारा ,तारीख भी तुम्हारी
फैसला करते मानो, तू खुदा हो गया।
इंसा से खुदा बनाया था तुमने प्रियम
तुझको ही छोड़कर वो जुदा हो गया।
©पंकज प्रियम
16.5.2018

No comments: