344. मोहब्बत की दास्तां
इश्क़ में अब और नहीं कोई धोखे खाये
किसी की आँख दर्द से न यूँ छलछलाये।
मुहब्बत नाम है सबसे हसीं ख्वाबों का
फिर मुहब्बत में सबने क्यूँ आँसू बहाये।
रवायत बन गयी है दिल तोड़ जाने का
इश्क़ की गलियों में सबके दिल लुटाये।
क्या सुनाएं अपनी मुहब्बत की दास्तां
इश्क़ की गलियों में हमने भी चोट खाये।
मतलबों में तो उन्होंने खूब गले लगाया
निकल गया जो काम, तो कन्नी कटाये।
तब तलक कृष्ण से लगे उनको"प्रियम"
मिला कोई और तो कैसे रावण बनाये।
©पंकज प्रियम
22.5.2018
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