मेरी ख़ामोशी
दिल मे क्या गुजरी है ,कोई बताएगा क्या
जो गुजरा है लम्हा,लौट के आएगा क्या।
छोड़कर गए वो तन्हा हमें करके रूसवा
दिल में जो जख़्म बना,भर पाएगा क्या।
उनसे मुहब्बत बेपनाह, हमने था किया
मेरी चाहत को कभी भूल पाएगा क्या।
जो मेरी एक झलक का यूँ तलबगार था
दूर हमसे रहकर चैन से सो पाएगा क्या।
चले जाओ न दूर,जहां भी तुम्हे है जाना
दर्द देकर यूँ दिल को,सुकून पाएगा क्या।
तेरे लफ्ज़ को वो ,बेताब रहता था प्रियम
तेरी ख़ामोशी को कभी सह पाएगा क्या।
©पंकज प्रियम
18.5.2018
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