हर शख्स सवाली है
दुनियाँ से तो जाना खाली है
दुश्मनी क्यों दिलों में पाली है।
दुश्मनी क्यों दिलों में पाली है।
हंसी की चाह जब दुनियां को
हर अक्स बना क्यों रुदाली है।
हर अक्स बना क्यों रुदाली है।
अहम में रोज ही टूट रहे रिश्ते
लगता यहाँ हर रिश्ता खाली है।
लगता यहाँ हर रिश्ता खाली है।
हर रोज दिल टूटता ज़ुबानों से
लगती यहां हर जुबान काली है।
लगती यहां हर जुबान काली है।
घर टूट रहे स्वार्थ की लड़ाई में
घर घर खनकती रोज थाली है।
घर घर खनकती रोज थाली है।
कितने जवाब दोगे तुम प्रियम
हर शख्स बना यहां सवाली है।
हर शख्स बना यहां सवाली है।
©पंकज प्रियम
14.5.2018
14.5.2018
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