Sunday, May 6, 2018

317.समंदर लफ्ज़ों का

समंदर हूँ लफ्ज़ों का

समंदर हूँ अंदर का तूफ़ां लहर लाएंगे
शान्त हूँ अगर मचल गया कहर ढाएंगे।

समंदर हूँ लफ्ज़ों का,खामोश रहने दो
मचल गया तो अल्फ़ाज़ उमड़ जाएंगे।

उठ गई लहरें गर दिल से जज्बातों की
शाहिल में बसे सारे शहर उजड़ जाएंगे।

अपनी ही रवानी में मौजों को बहने दो
मचल गया तो किनारे भी बिखर जाएंगे।

समंदर हूँ मुहब्बत का,इश्क़ लहराने दो
उठा जो ज्वार दिल का,सब डूब जाएंगे।

बहुत राज छुपा है दिल में दफ़न होने दो
छलक गया तो बहुत से दिल टूट जाएंगे।

बहुत गम छुपाया है प्रियम,बस रहने दो
मचल गया दिल तो सब बिखर जाएंगे।
©पंकज प्रियम
6.5.2018

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