Tuesday, May 22, 2018

342.चोट

342.दिल की चोट

निगाहों से भी बड़ी चोट लगती साहेब!
कोई देखकर भी अनदेखा कर जाता है
कत्ल भी कर जाते हैं,वो बड़े आराम से
उनपर कोई इल्ज़ाम भी नहीं आता है।

दिल को भी बहुत चोट लगती है साहेब
जब औरों के लिए अपना रूठ जाता है
एक कतरा खून भी नहीं बहता दिल से
और शीशे की तरह ये दिल टूट जाता है।

अपनों से भी बड़ी चोट लगती है साहेब
जब अपना कोई बदनाम कर जाता है
बेवजह सजा किसी और को मिलती है
और कत्ल करके भी कोई बच जाता है।

लफ्ज़ों से भी बड़ी चोट लगती है साहेब
मतलब में अपना भी झूठ बोल जाता है
न कोई सबूत ,न ही कोई गवाह मिलते
लफ्ज़ों से ही कोई कत्ल कर जाता है।

भरोसे पर बहुत चोट लगती है साहेब
जब कोई अपना विश्वास तोड़ जाता है।
इक आवाज़ तक भी नहीं है निकलती
और भरोसे से भी भरोसा उठ जाता है।

मुहब्बत से भी तो चोट लगती है साहेब
जब अपना ही कोई दिल तोड़ जाता है
बेपनाह मुहब्बत जिससे, हम हैं करते
गैरों के लिए कैसे पल में बदल जाता है।
©पंकज प्रियम
21.5.2018

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