न जाने क्यूँ?
न जाने क्यूँ ऐसा होता है?
भरोसा तोड़ते वही
जिसपे भरोसा होता है।
न जाने क्यूँ?
जिंदगी में जाना
सबकुछ ही माना
ख़्वाब तोड़ते वही
जिसे देख ख़्वाब सोता है।
न जाने क्यूँ?
बड़ी बेरहम,
बेमुरव्वत,बेदर्द,
बेकदर बत्तमीज है दुनियाँ
सपने तोड़ते वही
जिनपे विश्वास होता है।
न जाने क्यूँ?
स्वार्थ भरे,अंहकार भरे
काँटो से है ये राह भरे
नेकी की कोई कदर कहाँ?
कैसे बदलते है लोग
देख कर ही दिल रोता है।
न जाने क्यूँ?
न जाने क्यूँ ऐसा होता है।
न जाने क्यूँ?
©पंकज प्रियम
14.5.2018
समंदर हूँ मैं लफ़्ज़ों का, मुझे खामोश रहने दो, छुपा है इश्क़ का दरिया, उसे खामोश बहने दो। नहीं मशहूर की चाहत, नहीं चाहूँ धनो दौलत- मुसाफ़िर अल्फ़ाज़ों का, मुझे खामोश चलने दो। ©पंकज प्रियम
Monday, May 14, 2018
326.न जाने क्यूँ?
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