मजबूर
पेट की आग में,यूँ मजबूर हो गया
घर का बादशाह ,मजदूर हो गया।
बच्चों को दे रोटी,खुद पानी पी लिया
भूख की तड़प में चेहरा बेनूर हो गया।
गांव की हवेली तो,कबका भूल गया
तंग फुटपाथ में सोना,मंजूर हो गया।
कर्ज लेकर यहाँ,कोई फरार हो गया
किसानों का मरना तो जरूर हो गया।
संसद में हर बात पे लगता ठहाका
किस्सा लोकतंत्र का मशहूर हो गया।
चन्द सिक्कों की खनक सुनकर यहाँ
हर आदमी बहुत ही मगरूर हो गया।
नोटों में इंसाफ का मन्दिर बिक गया
कुर्सी पाकर उन्हें बहुत गुरुर हो गया।
इंसाफ का तराजू ,किस ओर झुका
सबूतों के बिना,वो बेकसूर हो गया
हमारे पैसों से उसने खूब ऐश किया
जनता का स्वप्न,तो चूर चूर हो गया ।
सरहद पे जवानों का यूँ खून बह गया
तिरंगे में लिपट कर,मसरूर हो गया।
जीवन की चाकरी नहीं है आसां प्रियम
नौकरी का मतलब ,जी हुजूर हो गया।
©पंकज प्रियम
9.4.2018
पेट की आग में,यूँ मजबूर हो गया
घर का बादशाह ,मजदूर हो गया।
बच्चों को दे रोटी,खुद पानी पी लिया
भूख की तड़प में चेहरा बेनूर हो गया।
गांव की हवेली तो,कबका भूल गया
तंग फुटपाथ में सोना,मंजूर हो गया।
कर्ज लेकर यहाँ,कोई फरार हो गया
किसानों का मरना तो जरूर हो गया।
संसद में हर बात पे लगता ठहाका
किस्सा लोकतंत्र का मशहूर हो गया।
चन्द सिक्कों की खनक सुनकर यहाँ
हर आदमी बहुत ही मगरूर हो गया।
नोटों में इंसाफ का मन्दिर बिक गया
कुर्सी पाकर उन्हें बहुत गुरुर हो गया।
इंसाफ का तराजू ,किस ओर झुका
सबूतों के बिना,वो बेकसूर हो गया
हमारे पैसों से उसने खूब ऐश किया
जनता का स्वप्न,तो चूर चूर हो गया ।
सरहद पे जवानों का यूँ खून बह गया
तिरंगे में लिपट कर,मसरूर हो गया।
जीवन की चाकरी नहीं है आसां प्रियम
नौकरी का मतलब ,जी हुजूर हो गया।
©पंकज प्रियम
9.4.2018
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