Monday, April 9, 2018

दर्दे हाल लिखता है

               

कोई अल्फ़ाज़ लिखता है,कोई जज़्बात लिखता है।
मगर ये मेरा दिल है जो,दिल-ए-हालात लिखता है।
ये मेरा दर्द कैसा है,ये तेरा दर्द कैसा है
हृदय से फूट कर निकला,दर्द-ए-हाल लिखता है।1

कभी कान्हा की मुरली है,कभी राधा की बोली है
मेरा ये दिल बहुत नादां,फकीरों की सी झोली है।
ये मेरा दिल कैसा है,ये तेरा दिल कैसा है
जमाने से छुपाकर तो,तेरे संग खेले होली है।2

कभी छुपचुप के हंसता है,कभी तनहा रोता है
सुबह से शाम तक तो ये,तेरी ही बात करता है।
ये मेरा दिन कैसा है ये तेरी रात कैसी है
ख्वाबों से लिपटकर तो ,ये पूरी रात जगता है।3
©पंकज प्रियम
9.4.2018


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