Thursday, April 19, 2018

शर्मसार

शर्मसार

कैसे करें अब यहाँ जयजयकार
रोज होता मासूमों का बलात्कार
जाति मजहब की होती सियासत
देख मानवता भी हुई है शर्मसार।

कैसी ये आग लगी,कैसी है अंगार
फिजाओं में मची है कैसी हाहाकार
फूलों को तोड़कर फेंक दिया सबने
कलियों को भी मसल रहे बारम्बार।

सत्ता कुर्सी सियासत सब हैं मक्कार
धर्म का चश्मा चढ़ाए,उसे धिक्कार
सिर्फ सियासी रोटी सेंका है सबने
हो हल्ले में दबी मासूम की चीत्कार।

©पंकज प्रियम
18.4.2018

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