यह कैसा हमारा विधान है
चुप रहता क्यों संविधान है?
छेड़छाड़ कितने हुए इसमें
हर मर्ज की सत्ता निदान है।
अपने हिसाब से सब पढ़ते हैं
अपने मिज़ाज से इसे गढ़ते हैं
खुद पे खुद सब जुल्म करके
दोष धर्म-जात पे सब मढ़ते है।
चोर उचक्का, चक्की पिसता
हत्यारा,दुष्कर्मी बच जाता है।
इंसाफ में कोई चप्पल घिसता,
आतंकी को कोर्ट बचा जाता है।
इतनी यहां की लचर व्यवस्था
हुई है कैसी देश की व्यवस्था
गरीब किसान यहां फंदे झूले
नेता हवाई मौज मस्ती करता।
कोढ़ बन चुका अब आरक्षण
नित करता प्रतिभा का हनन
भीख माँगते सामान्य गरीब
सम्पन्नों को मिलता संरक्षण।
©पंकज प्रियम
14.4.2018
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