Monday, April 16, 2018

उठो द्रौपदी!


   

उठो द्रौपदी!सम्भालो वस्त्र
छोड़ो लज्जा,उठाओ शस्त्र
अब नहीं यहां माधव आएंगे
ना तुम्हें कोई अर्जुन बचाएंगे।

घरघर शकुनि द्युति बिछाए
हर डगर पर दुःशासन बैठा है
पुत्र मोह में आंखों को मूंदे
हर घर में धृतराष्ट्र चुप बैठा है।

हर युग की तेरी यही कहानी
आँचल में दूध,आंखों में पानी
उतारो मेंहदी,उठाओ खड्ग
बन जाओ अब झांसी की रानी।

रावण की कैद में होकर भी
सीता तो फिर भी सुरक्षित थी
न तो हनुमान लंका जलाएंगे
अब ना ही राम बचाने आएंगे।

अपने अंदर हनुमान जगाना है
दुष्कर्मियो की लंका जलाना है
बेटी की अस्मत की खातिर
खुद ही हथियार तुम्हे उठाना है।

छोड़ो ममत्व,उठाओ तलवार
हर दुष्कर्मी पे, करो तुम वार
बचा लो खुद अपनी इज्जत
बनो भवानी!तुम करो संहार।


©पंकज प्रियम
16.4.2018

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