दिल की बात क्यूँ जाहिर तुम गैरों से करते हो
अपने जज्बात क्यूँ जाहिर औरों से करते हो।
पर्दानशीं तुम कुछ भी तो अब राज रह जाने दो
घर की बात क्यूँ जाहिर खिड़कियों से करते हो
इश्क़ के हर अल्फ़ाज़ लबों को ही कह जाने दो
मुहब्बत के राज क्यूँ जाहिर आँसुओ से करते हो।
अपनी चाहत की हर बात,लफ़्ज़ों में ढल जाने दो
इश्क़ की वो बात क्यूँ जाहिर दीवारों से करते हो।
बहुत रौशनी है जरा बादलों में चाँद छुप जाने दो
रात की हर बात क्यूँ जाहिर दोस्तों से करते हो।
©पंकज प्रियम
24.4.2018
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