Thursday, April 26, 2018

वक्त और बारात

वक्त और बारात
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वक्त वक्त की बात होती है। कभी वक्त के साथ हम नहीं तो कभी वक्त हमारे साथ नहीं होता। जब वक्त था तब अपनी मर्जी नहीं थी,अब अपनी मर्जी के मालिक हैं तो कमबख्त वक्त ही नहीं है। आज चचेरे भाई की बारात थी और मैं चाह कर भी नहीं जा सका। बहुत इच्छा थी लेकिन जिम्मेवारियों का बोझ और वक्त की कमी के कारण अपनी इच्छा का शमन करना पड़ा। कल और परसों बड़े कार्यक्रम हैं जिसकी तैयारियों में जुटा हूँ। बारात जाने का एक अलग रोमांच होता है हालांकि उम्र के साथ उमंग थोड़ी फीकी जरूर पड़ जाती है। याद है सात साल की उम्र होगी मेरी,जीवन मे पहली बार बारात जाने का मौका तब आया था जब मेरे चाचा की बारात जा रही थी। आषाढ़ का महीना ,झमाझम बारिश और गया जाना था। मैं सज धर कर पूरे उत्साह में तैयार था। जब बारात जाने की बारी आई तो मुझे ले जाने से मना कर दिया गया। भीड़ बहुत ज्यादा थी,मैं छोटा था,बरसात का महीना और लम्बी दूरी की बारात,बहानों की लंबी फेरहिस्त मुझे पकड़ा दी गयी। कसम से इतना बुरा लगा कि पूछिये मत, दिल टूट गया,बाराती बनने का सारा अरमान मानो बारिश में धूल गया। बारात तो निकल गयी साथ मेरी ख्वाहिश भी चली गयी। मैं खड़ा रह गया,बारात जाने के बाद बहुत रोया,गला फाड़कर रोया,गांव की चाची,दादियों ने खूब सांत्वना दिया कि उनके घर जब कोई बारात जाएगी तो मुझे जरूर भेजा जाएगा। खैर बात आई गई हो गयी। बिल्ली के भाग से छीका टूटा और अगले ही साल गांव में एक और बारात जाने की तैयारी हुई। पहली बार बारात जाने का मौका मिला,उत्साह की चरम सीमा उफ़ान पर थी। नया कपड़ा,नये जूते और नया बैग लेकर वक्त से पहले गाड़ी पर बैठ गया। इस बार कोई रिस्क नहीं लेना चाह रहा था। बड़ी वीडियो कोच बस थी।सोनो के पास चुरहेत गाँव,एक नदी के पार। बस ड्राइवर ने अपने हाथ खड़े कर दी। सभी बाराती नदी में उतर कर इंतजार करने लगे। स्वच्छ धवल चाँदनी में नदी में रेत पर वक्त गुजारने का अलग रोमांच था। प्रारम्भिक स्वागत नदी तट पर ही हुआ। फिर हमलोगों के लिए ट्रेक्टर आया, उसी में मस्त गद्दा बिछाया गया और हम सब बाराती चल पड़े मंजिल की ओर। गांव में बढ़िया स्वागत हुआ। मेरे लिए पहला अनुभव था सो कोई तुलना भी नहीं कर सकते थे। भोजन की तैयारी चल रही थी कि हलवाई की कड़ाही से ऐसी लपट निकली की पूरे टेंट में आग लग गयी। चारो तरफ अफरातफरी का माहौल।मैं एकदम से डर गया। खा कर सोने गया तो किसी ने मेरा नया जूता चोरी कर लिया। बारात में जूता चोरी हो जाय इससे तकलीफदेह कुछ नहीं हो सकता। जूता चोरी होने के गम में नींद तो उचट ही गयी थी ऊपर से बगल में एक व्यक्ति जोर से खर्राटे भर रहा था। खर्राटे में मुझे और दिक्कत होने लगी। खर्राटे की भयानक आवाज से डर भी लग रहा था। बचपना था ,उस व्यक्ति को एक लात जमा दिया,कुछ देर खर्राटा बन्द हो गया। थोड़ी देर के फिर खर्र..खर्र...शुरू ,फिर एक जोरदार लात मेरी चली और आवाज बन्द। यही सिलसिला चलता रहा। आखिर मैंने ही हथियार डाल दिया और दूसरे कमरे में चला गया। जूते चोरी हो गए थे। गांव में चप्पल मिलने की भी उम्मीद नहीं थी।खाली पैर बारात का मज़ा लेता रहा। उनदिनों बारात को दोपहर का भोजन खिलाकर विदा किया जाता था। गांव में आम से लदे ढेरों पेड़ थे। सभी बारातियों ने खूब छककर आम खाया ।दोपहर बाद बारात वापस लौटी। इसके बाद गांव या रिश्ते की करीब करीब हर बारात मैंने अटेंड की। काफी खट्टे-मीठे अनुभवों से दो चार होता रहा। अब बारात का स्टाइल भी बदल गया है। अमूमन बाराती कोई जाने को जल्दी तैयार नहीं होता। अगर गया भी तो रात का भोजन कर भागने की फिराक में रहता है। लड़की वाले भी अहले सुबह ही बारात विदा करने में ही सहूलियत समझते हैं। अब न मरजाद की परम्परा रही और न ही किसी के पास दो दिनों का वक्त। अब तो लगता है कि एक ही दिन सारे रस्मोरिवाज पूर्ण हो जाय तो बेहतर है। अब तो बारात जाने का वक्त भी नहीं मिल पाता है।
©पंकज भूषण पाठक"प्रियम

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