फीलिंग्स
उन दिनों लैंडलाइन में जो फीलिंग थी
अब वो वीडियो कालिंग में भी नहीं है।
जो मजा तब खतों के इंतजार में ही था
अब वीडियो चैट वाले प्यार में भी नहीं।
लैंडलाइन की घण्टी में जो अहसास थी
कॉलर ट्यून में भी,अब वो जज़्बात नहीं।
खत लिखने का भी तब क्या अंदाज था
खत पाने का भी क्या अलग अंदाज था।
तब हवाएं ही बता देती थी उनका हाल
फेसबुक व्हाट्सएप में भी नही है कमाल।
चाँद की रौशनी से उतर आते थे दिल में
अब तन्हा रह जाते है उनकी महफ़िल में।
©पंकज प्रियम
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