Friday, April 6, 2018

हुश्न बहार

हुश्न लाज़वाब

हुश्न जो यूँ बिखरे बाजार में,ऐ जानेमन
दिल बेकरार है, शबाब में डूब जाने को।

दिल तो यूँ ही मुफ्त में बदनाम है सनम
इश्क़ में यूँ बहार है,जोश भर जाने को।

इश्क़ तो यूँ ही मुफ्त में,बदनाम है सनम
हुश्न खुद बेताब है,मदहोश कर जाने को।

हुश्न भी मुफ्त में बदनाम है तेरा जानेमन
तू खुद गुलाब है,लाज़वाब कर जाने को।

दिल नजर यूँ ही,मुफ्त बदनाम है प्रियम
हुश्न खुद बेताब है जलवाफ़रोश जाने को।

©पंकज प्रियम
6.4.2018

No comments: