Saturday, April 7, 2018

चाह

चाह
चाह नही दौलत की
लफ़्ज़ों से मैं परखा जाऊं।
चाह नही शोहरत की
बस प्रेम सुधा बरसा जाऊं।
चाह नही मेडल की
सम्मानों की मैं ढेर लगाऊं।
चाह नहीं जिस्म की
बस दिल से रूह उतर जाऊं।
चाह नही मोहब्बत की
बस तेरे ख्वाबों में बस जाऊं।
चाह नही तेरी चाहत की
बस तेरी आँखों में बस जाऊं।
चाह नही महक फूलों की
बस तेरी बगिया में खिल जाऊं।
चाह नहीं गीता कुरान की
कविता सरिता बन निकल जाऊं।
चाह नहीं खुदा पुराण की
बस हर दिल की चाहत बन जाऊं।
चाह नही कोई भगवान की
सहज सरल इंसान प्रियम बन जाऊं।

पंकज प्रियम
7.4.2018

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