अप्रैल फूल
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हर कोई मज़ाक में ही मशगूल है
क्योंकि आज तो अप्रैल फूल है।
नहीं किसी दिल मे चुभता शूल है
दिन मस्ती मज़ाक अप्रैल फूल है।
मूर्ख बनाकर मन खुश हो लेता है
बेवकूफी में भी हंसी बिखेर देता है।
किसी ने दुखती रग आज छेड़ दिया
मैंने भी दिल का गुबार बिखेर दिया।
बात चली शादी शुदा जीवन की
अप्रैल फूल ससुराल के अर्पण की।
शादी बिन सुगंध महकता फूल है
मानो जैसे कि वो अप्रैल फूल है।
बड़े से बड़ा मजाक कर लेता है
दिल का गुबार निकाल देता है।
दिन में रोज होता झगड़ा-झंझट
रात फिर दिल साथ हो जाता है।
बिना मतलब के पति-पत्नी में
रोज ही तो किचकिच होता है।
रोज लड़ना,रूठना और मनाना
जिंदगी का यही तो है अफ़साना।
जिंदगी मानो एक घूमता लट्टू है
शादी ऐसा खट्टा मीठा लड्डू है ।
जो खाये सो पछताए,जो ना खाये
वो पति-पत्नी को देख ललचाए।
बागों में महकता, गुलाब फूल है
कभी बवंडर साथ, उड़ता धूल है।
दिन कभी अनुकूल, तो प्रतिकूल है
शादीशुदा जीवन तो अप्रैल फूल है।
✍पंकज प्रियम
1अप्रैल2018
समंदर हूँ मैं लफ़्ज़ों का, मुझे खामोश रहने दो, छुपा है इश्क़ का दरिया, उसे खामोश बहने दो। नहीं मशहूर की चाहत, नहीं चाहूँ धनो दौलत- मुसाफ़िर अल्फ़ाज़ों का, मुझे खामोश चलने दो। ©पंकज प्रियम
Sunday, April 1, 2018
अप्रैल फूल
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