Sunday, April 22, 2018

कवि और कविता

कवि और कविता

नाम के आगे, कवि लिखने से
ऐसे कोई कवि, नहीं बन जाता है।
चन्द शब्दों की, तुकबन्दी से
लफ़्ज़ों का रवि, नहीं बन जाता है।
सिर्फ अल्फ़ाज़ों के बवंडर से
कविता का सृजन नहीं हो जाता है।
सिर्फ लफ़्ज़ों के ही समंदर से
साहित्य संवर्द्धन नहीं हो जाता है।
जब भावनाओं के समंदर से
यहां कोई गहरा ज्वार उठ जाता है।
जब दिल की गहराईयों से
यूँ ही दर्द का ग़ुबार फुट जाता है।
जमाने के दर्द को अपना के
जो खुद शब्दों में बयाँ कर जाता है।
बच्चे,बूढ़े सबकी आँखों से
आँसू बनके लफ़्ज़ों में बह जाता है।
जो औरों के दुःख दर्द में
खुद का जीवन अर्पित कर जाता है।
जाति,धर्म,मजहब से ऊपर
अन्याय के विरुद्ध कलम उठाता है।
गरीबों के जुल्म और दमन के
ख़िलाफ़ अपनी आवाज़ उठाता है।
छोड़कर राग दरबारी जो
सोयी हुई सरकार को जगा जाता है।
दर्द,तकलीफ और आँसू में
जो अपनी क़लम को डुबो जाता है।
दुश्मनी की दीवारें तोड़कर
जो देशप्रेम का भाव जगा पाता है
जन की कविता जो करे
वही तो एक सच्चा कवि कहलाता है।
जले सूरज से अधिक,तभी!
जहाँ न पहुंचे रवि,कवि पहुँच जाता है।

©पंकज प्रियम
22.4.2018

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