Sunday, April 8, 2018

इश्क़-रिस्क

इश्क़ रिस्क

हम प्यार प्यार कहते रहे
वो प्याज प्याज सुनते रहे
शब्दों की हेराफेरी में वो मेरे
इश्क़ का सलाद काटते रहे।

हम इश्क़ इश्क़ कहते रहे
वो रिस्क रिस्क सुनते रहे
कम्बख्त शब्दों के फेर में
वो मेरा हिसाब करते रहे।

हम ऐतबार  लिखते रहे
वो इतवार इतवार पढ़ते रहे
शब्दों की हेराफेरी में वो
इश्क़ का अवकाश करते रहे।

©पंकज प्रियम
8.4.2018

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