Monday, April 23, 2018

क्यों न हो दुराचार?

क्यों न हो दुराचार
😢😢😢😢😢
हो गया रेप का अब, कानून पास
अपराध थमेगा!क्या है ये विश्वास।

अगर नहीं बदलेंगे विचार-संस्कार
क्यों नहीं होगा, फिर बलात्कार?

बात बात पे यहाँ बिकती है अस्मत
मर्द ही लिखते है नारी की किस्मत।

मां-बहन की सब देते रोज गालियां
गालियों पे यहां बजती है तालियाँ।

कहीं बाप-दादा पे सुनी है गालियां?
स्त्री अंगों पे ही क्यों पढ़ते गालियां?

कभी आंखों से, तो कभी बातो से
हर रोज शर्मसार होती है नारियां।

टीवी पर नारी देह का नित प्रदर्शन
इंटरनेट पे नग्नता खोजता बचपन।

फ़िल्मों में खूब दिखता बलात्कार
बच्चों का भी बदल रहा व्यवहार।

घर बाहर,हर डगर दिखे दुराचार
फिर भला कैसे रुके ये ब्लात्कार।

©पंकज प्रियम
23.4.2018

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