Tuesday, April 10, 2018

डर

डर
क्या खूब,कोई कह गया
जो डर गया,वो मर गया।
वो जीता नही,वो हार गया
डर से डर के जो डर गया।
हैं नही अमर ,जानते मगर
मौत से यहां,सब डर गया।

यहां कोई भूख से है डरा
जिंदगी बोझ लेकर है मरा
जिंदा लाश से है अधमरा
जिंदगी को ऐसा कर गया
बोझ ढोते ही वो गुजर गया
अपने अक्स से ही डर गया।

क्या कहेंगे चार लोग यहां
इस बात पे सब डर गया।
हर बात पे डर घर कर गया।
दुश्मनों से निपटने का डर
दोस्तों से बिछड़ने का डर
लोग यहां वक्त से डर गया।

सत्ता गंवाने का बहुत डर
नौकरी बचाने का भी डर
घर उजड़ जाने का है डर
दर दर भटक जाने का डर
डर में सोचते ही गुजर गया
यहां हर शख्स ही डर गया।

दिल में उठे इजहार का डर
मुहब्बत में इनकार का डर
इश्क़ में रुसवाई का है डर
उनकी बेवफाई का भी डर
दिल खेल में हार से डर गया
आशिक आशिकी से डर गया।

जीता वही जो डर के आगे
बड़ी हिम्मत से गुजर गया।
जो जीता वो सिकन्दर हुआ
जो डर गया समझो मर गया
जीवन उसका ही सँवर गया
डर को ही ताकत कर गया।
©पंकज प्रियम
10.4.2018

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