Monday, April 23, 2018

साज़िशों के लिए

साजिशों के लिए
हम तरसते रहे,बादलों के लिए
वो बरसते रहे,मनचलों के लिए।
आशियाने बने,बिजलियों के लिए
वो महकते रहे,तितलियों के लिए।
हम तड़पते रहे,जुगनुओं के लिए
वो चाँद बन गए,मजनुओं के लिए।
हम तो मरते रहे,अपनों के लिए
और वो मरते रहे,दुश्मनों के लिए।
हम बदनाम हुए,ख्वाहिशों के लिए
वो बदनाम हुए,साजिशों के लिए।
©पंकज प्रियम
22.4.2018

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