मेरे दिल में
यूँ ही नहीं चर्चा होती है मेरी,हर महफ़िल में
प्रेम की अविरल धारा, बहती है मेरे दिल में।
नफरतों का बाज़ार,भले ही गर्म कर लो तुम
प्रेम की सुधा बरसती है हरपल मेरे दिल में।
दर्द देनेवालों की कमी नहीं है, इस जहां में
दर्द बांटने का हर हुनर,मौजूद है मेरे दिल में।
एक आग का दरिया समझते है लोग जिसे
वही इश्क़ का समंदर,उमड़ता है मेरे दिल में।
क्या सुनाओगे तुम मुहब्बत की दास्तां अपनी
प्रेम का पूरा ग्रन्थ ही पड़ा है यहाँ मेरे दिल में।
दर्द देकर वो भला क्या परखेंगे तुझको प्रियम
जमाने का दर्द यूँ ही, छुपा रखा है मेरे दिल में।
©पंकज प्रियम
20.4.2018
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